छत्तीसगढ़िया लोगन मन अक्सर ये बात कहिथें। ”मया-दया ला धरे रहिबे संगवारी” …. ये “दया-मया” का ए? अउ “धरे रहिबे” के का मतलब होथे? एकर चर्चा हमन बाद म करबो, पहिली ये बतावन कि मनखे संग परेवा के यारी होगे हे, अइसे यारी कि परेवा हा ओकर संग नई छोड़य, जिहां जाथे ओकर खांद म […]
(जय-जोहार)। भादो के महीना, अंधियारी पाख, आठे के तिथि, घुप अंधियारी रात राहय, बादर गरजत राहय, बिजली चमकत राहय अउ घनघोर बरसा होवत राहय। रोहणी नक्षत्र म मथुरा के कारागार म वसुदेव के पत्नी देवकी के गरभ ले भगवान किसन-कन्हैया हा जनम लिन। अधर्म, अन्याय, अत्याचार के नास करे बर, धर्म अउ न्याय के स्थापना […]
का-का नई रिहिन हरि ठाकुर?… मनखे एक, फेर करम अनेक। स्वर्गीय हरि ठाकुर बर ये बात बिल्कुल सटीक बइठथे। सोचत हंव -ओकर जयंती म हमन ओमन ला कोन रूप म सुरता करन। का-का नई रिहिन ओमन? एक आदमी हा अपन जिनगी म कतको किसम ले जूझत-परत के-के रूप म देस अउ समाज के सेवा कर […]
परेम मंडल हा पंडवानी गायक नोहय फेर जिहां चार पांच झन मनखे मन ला एक संग सकलाय देखथे त ये गीत ला टिपलिस उड़ाय बर ढील देथे – ”पांचो पंडो मिले आपस म जुआ के खेल रचाये रामा।“ बुधारू, लखन, सीताराम, चुरामन अऊ रामबगस ल पहिर ओढ़ के सइकिल म जात देखिस तहां फेर सुरू […]
विजय मिश्रा ‘अमित’ बारहों महीना बड़े बिहनिया किंजरे फिरे के मोर आदत हावय। एखर ले तन ल ताजा हवा अउ मन ल किसिम किसिम के बने बने बिचार तको मिलथे। काली के बात आय मेहर रोज कस बिहिनिया चार बजे किंजरे बर निकले रेहंव। उही बेरा म कखरो सिसक सिसक के रोये के आवाज सुने […]
सुशील भोले. छत्तीसगढ के मैदानी भाग म प्रचलित संस्कृति म वइसे तो किसम-किसम के रोटी-पिठा बनाए जाथे, फेर ठेठरी अउ खुरमी के अपन अलगेच महत्व हे। इहां के जम्मो तीज-तिहार म इंकर कोनो न कोनो रूप म उपयोग होबेच करथे। एकर असल कारन का आय? सिरिफ खाए-पीए के सुवाद के अउ कुछू बात? असल म […]
दुर्ग. मुंबई म रहवईया अऊ दुरुग म बढ़े कवयित्री रजनी साहू के काव्य संकलन “सहस्त्र धारा” के विमोचन करे गिस। समारोह अखिल भारतीय अग्निशिखा मुम्बई के तत्वावधान म दुर्ग स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सभागृह म होईस। ए दौरान जम्मो मन ह ए काव्य संग्रह ल बहुत पसंद करिस। समारोह के अध्यक्षता प्रसिद्ध लघु कथाकार […]
हमन लइका रेहेन त हमर गाँव नगरगांव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा म गरमी के दिन म झिरिया कोड़ऩ अउ वोमा कूद-कूद के नहावन। सुशील भोले संजय नगर, रायपुर वो लइका पन के उमंग रिहिस हे। फेर आज इही झिरियाह गरमी के दिन म लोगन के जीए के सहारा बनत हे। छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्र […]
खोमेन्द्र देशमुख. छत्तीसगढ़ के ए पुराना कहावत हे कि घुरुआ के दिन घलो बहुरथे…। याने कि अईसन चीज जेखर कोनों महत्व ल नई समझिस तेखर थोड़किन दिन बाद अब्बड़ महत्व ह बाढ़ जाथे। इही हाल अब छत्तीसगढ़ म अब खुदेच घुरुआ के होए बर हे। घुरुआ भर नहीं बल्कि ओखर संग नरवा, गरुआ अऊ बारी के […]
सुशील भोले आजकाल ‘अस्मिता” शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें, व्याख्या करत रहिथें। अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, […]